कहीं किसी शहर में दो पड़ोसी, निकटतम पर कुछ खिंचे कुछ तने. माहौल अजीब तनाव बेशुमार, रिश्ते थके से थे थोड़ा बंधे-बंधे. ना राम राम ना मुस्कान दुआ सलाम, संगत नहीं ग़वारा एक दूजे को. भाती न शक्ल एक दूसरे की, नफ़रत न हो पर एक खामोशी सी थी. बात करने की भी जल्दी न थी, जगह सारी घेरकर अपनी तरफ़ की. दीवार ऊंची फर्श संगमरी छतें बुलंद थी, सुकूं आराम खुशी कहीं और नज़रबंद थी. गाड़ी नहीं भी हो जगह घेरे रखते थे, गाड़ी ना खड़ी हो पाए किसी की तय रखते थे. चकबंदी कर दी साईकल स्कूटर लगाकर वहाँ, हुआ ऐसा एक दिन कुछ इस क़दर यहाँ. चला बुल्डोजर एक दिन उनके घरों पर, चला दी हो जैसे तलवार जैसे परो पर. मिटा दिए कुछ मीटर के आशियाने, दुःख सभी को था देख दर्द के फ़साने. फर्श को अर्श बनता देख सोच बदली, आ मिला दें संग सारा मैदान बना आंगन असली. हफ़्ते महीने प्यार मुहब्बत से गुज़र गए. सभी ने देखा ये किस तरह बदल गए, अखबार चाय की चुस्की इकठ्ठा पढ़ने लगे. लंच डिनर भी अब साथ होने लगे, फिर एक दिन जुगाड़ से एक को राहत मिली. बनी दीवार फिर से फर्श भी चलो मुसीबत टली, मुश्किल से जुड़े तार एक बार फिर टूट गए. लालच से फिर एक दिन सर फूट गए, शिकायत करना आजकल काफ़ी आम है. मेरा फ़ायदा बेशक न हो पसंद उसका नुकसान है, हालात देख कवि हृदय उद्वेलित हुआ. क्या खोखर बता ये समाज किससे प्रेरित हुआ, कुछ ग़ज़ ज़मीन इधर से उधर करके जमींदार बने हो. इन ईंट की दीवारों के फिर से चौकीदार बने हो, योगेंद्र खोखर
मुहब्बत का दिया जला गोधूलि से रात तक रख तू, सुलगते बुझते दिलों में ज़रा मद्धम रोशनी कर दे. प्रभात वेला में नए अरमान कहीं जग जाएं क्या पता, तपते दिन में झुलसने का खौफ़ हर ख्वाब को सताता है. समझना मुनासिब नहीं होता सबके लिए खामोशी को, अल्फ़ाज़ भी कईं बार कहने से अपनी बात डर जाते हैं. देखकर वो नाम अपने दिल के किसी कोने में इस बार, तू बता क्या कुछ राज बेशुमार बेसाख्ता खुल जाते हैं. संजीदगी से लिखने का ख्याल इस दिल में जब भी आया, हैरान हो खोखर फिर एक बार खुद को मचलता पाया. योगेंद्र खोखर
सर जड़ेजा की है अद्भुत कहानी, ना कोई था दर्द है ना परेशानी. मदमस्त प्रेमी की तरह था वो, क्रिकेट प्रेमियों का चहेता था वो. अब हालात कुछ इस क़दर हुए हैं, गुमनामी के अंधेरे हासिल हुए हैं. उन दिनों की याद में बेइख़्तियार है, हँस तो लिया करता है पर ना क़रार है. नए जमाने का आशिक़ है रोयेगा नहीं, यादें भुलाकर हँसेगा चैन खोयेगा नहीं. इशांत या अगरकर ना बन जाये बस डर है, आशा है कि लड़के में लड़ने का जिगर है. सर की बात एक उदाहरण है बस ज़रा, इंसान मेरी जान चाहे हो जितना भी खरा. वक़्त कभी ऐसा भी आता है समझ लीजै, अच्छा करके भी बात ना बने क्या कीजै. जहाँ मिले मौका अपनी ताक़त दिखा दे, बेवज़ह रह खुश खुशियों को न्यौता दे. समय वह भी नहीं रहा बदलेगा यह भी, टेस्ट में अभी है आईपीएल भी है अभी. मुक़ाबला ज़रा सख्त है स्थान का झगड़ा है, चहल कुलदीप बहुत बढ़िया हैं ये लफड़ा है. खतरा तो अश्विन जैसों को भी इधर हुआ है, तुझे एक जगह चाहिए अपनों की दुआ है. योगेंद्र खोखर
कभी सोचा था कि बांग्लादेश हमसे आगे निकल जायेगा किसी क्षेत्र में? कमाल कर दिया, शेख हसीना ने बहुत ताक़तवर फैसला लिया है. तारीफ़ लाज़मी है, इसका असर भी जरूर दिखेगा. कोई हमारे यहाँ भी सुने, हिम्मत दिखाए तो बात बने. हमारी पीढ़ी यह अच्छे से समझती है कि वास्तव में मेरिट के सामने आरक्षण मायने नहीं रखता. बस ज़रा सा लालच छोड़ने की आवश्यकता है और कुछ नेताओं के द्वारा बेवकूफ बनने से बचना है. क्यूँ माँगने वाली मानसिकता लेकर बैठे हैं हम. जिनको आरक्षण मिला है वो यह त्यागकर उदाहरण प्रस्तुत करें. अपील है सबसे. क्यों दोस्तों, सही है कि नहीं? योगेंद्र खोखर
अहमकियाना ख्याल दिल में आया है, कूलर को क्या शोर करने को बनाया है. भर भरके पानी जितने पसीने बहाये मैंने, इतना तो ठंडी हवा को नहीं मैंने पाया है. चिंता लोगों को है लाल किला की अचानक, ऋषभ की बैटिंग से दिल मैंने बहलाया है. हर बार नापसंद टीमें मैच जीता करती हैं, इसी विचार से बेचारा दिल भर आया है. बड़े शौक से जिसने हर बार खाना खाया है, उसीको लोगों ने डाइटिंग करके लजाया है. इस समय यह नहीं खाते उस समय यह नही, कहकर क्यूँ इस क़दर भले मानुष को सताया है. काम करके उसने दुनिया में स्थान जो बनाया है, फुर्सत में उसको जरा खेल कूद अब रास आया है. धूप की कमी से विटामिन कम हो जाया करता है, गोपियाँ मिलें ना मिले धूप में श्याम रंग अपनाया है. योगेंद्र खोखर
कोई एक दिन यारों आपकी ही ज़ुबानी है, फ़ेसबुकिया दुनिया की अद्धभुत कहानी है. बात कुछ नयी है तो कुछ ज़रा पुरानी है, अनजान बचपन, थकता बुढ़ापा, मचलती जवानी है. किसी को घर ना जा पाने का मलाल है, इस बारे में मेरे मित्रों कहो क्या ख्याल है? सारा जहाँ अपना है क्यूँ बनते हो बेचारा, जब चाहे हो आओ आखिर घर है तुम्हारा. एक शायर को पुराने दिनों की याद आई है, नए ज़माने की उसने पर की क्यूँ रुसवाई है? शायरी कमाल की वह जनाब करते हैं, मुहब्बत से ज़माने से क्यूँ फ़िर डरते हैं. बचपन में जल्दी बड़े होने की थी कि नहीं, कैसे पूरी दुनिया में छा जाऊँ सोचा कि नहीं. अब आम और बचपन क्यूँ याद आता है भला? ये कौन सा जज़्बात तुम्हारे दिल में है ख़ला? बेचैनी दोस्तों को नीचा दिखाने की इस क़दर है, आधी अधूरी बातों का ही उनपर कुछ असर है. करेंगे क्या वो ऐसा भी ख्याल कभी आता होगा, रोज़ साबित होती उनके जाती अख़बार की ख़बर है. योगेंद्र खोखर
तेरे रेशमी ज़ुल्फ़ों की महक थी या कोई तरंग, तेरी आँखों में चाहत या मेरे मन की उमंग. था जो भी वो समा कुछ खास ही था कहीं, दिलों में तब से है अनकही मज़ेदार सी जंग. किया अच्छा जो रुखसत हो गयी तू तभी, वो मंज़र दिखा सकता था ना जाने कैसे रंग. रोक लिया था खुद को ना जाने कैसे मैंने तो, दिलो दिमाग की तक़रार से मचा दिल में हुड़दंग. गले लगाने की चाहत दोनो तरफ़ थी बराबर, मेरे दिल में कुछ और शरारत कर रही थी सत्संग. सीमाओं में रहना उचित है ये जानती है तू मैं भी, लड़खड़ा पर जाते हैं जब आते है स्वप्न सतरंग. योगेंद्र खोखर
मुश्किलों से साए में मुस्कुराता रहता हूँ, दुःख के बीज बोता हूँ, सुख उगाता हूँ. मेरे रास्तों में जो कांटे बोते रहते हैं, फूल उन की राहों में मैं बिछाता रहता हूँ. दोस्तों, बुजुर्गों से तन के मैं नहीं मिलता बस दुआओं की खातिर सिर झुकता रहता हूँ जानता हूँ रोने से दर्द और बढ़ता है, गम से चूर रहता हूँ मुस्कुराता रहता हूँ. कुछ मिजाज ही मेरा है अलग ज़माने से, ज़िन्दगी की उलझन का हल बताता रहता हूँ. मेरे काम से दुनिया बन गयी मेरी दुश्मन, जो उजड़ गए उनको मैं बसाता रहता हूँ. अपनी अपनी ताक़त पर सब को है जोगी, मैं भी अपनी कूवत को आजमाता रहता हूँ. डॉ. सुनील जोगी
है बैठा हर दिल में एक भगत सिंह राजगुरु सुखदेव आज भी है, तो क्या हुआ वो डरता जाता हर समय बेवज़ह ज़रा सी बात पर है. चाहता तो है बच्चों में हिम्मत बढ़े, रहें निड़र, करें हर मुसीबत का सामना, डर उसके दिल में कभी माँ पिता का बीवी का तो कभी बॉस का भी है. सफलता-असफलता नहीं रखती है महत्व कुछ उसको अच्छे से पता है, परीक्षा केंद्र पर जाती बेटी को देख धड़कता दिल ये कहाँ मानता है भला. जीवन का सार अच्छे कर्मों में है, त्याग में बहादुरी से लड़ पाने में है, सब समेट क्यूँ मोह माया में पड़े दिल में छाया है कायरता का धुआँ. ना बन सकता हर इंसान राजगुरु-सुखदेव या भगत सिंह है ना जरुरत अभी है, अपनी राह में निड़र कर्मयोगी की तरह इंसान का सुखद अहसास ही काफी है. देश प्रेम की ललक हर दिल में जगा कुछ भी कर जाने की पनपती समझ के साथ, आओ करें संकल्प ना करें बर्दाश्त देशद्रोह को ना झूट ना अकर्मण्यता को आने दे पास. योगेंद्र खोखर
जो बच्चा रोता, कभी मुस्कराता रहता है, खुदा ये खेल खुद उस को सिखाता रहता है. तुम अपने दावों की सूरत बिगाड़ दोगे ख़ुद, वफ़ा परस्त वफायें निभाता रहता है. तुम्हारे प्यार का इतना असरहुआ मुझ पर, ये दर्द मुझको को मुसलसल जगाता रहता है. हंसी ख़ुशी तुम्हें रुखसत मैं करता हूँ लेकिन, मेरा सुकून उसी लम्हा जाता रहता है. अगर है प्यार तो इज़हार इसका खुल के करो, जो बदनसीब है, सपने सजाता रहता है. वो बेवफा है, नहीं आयेगा तेरे दिल तक, तू किस के वास्ते आँखें बिछाता रहता है. अंधेरी रात में आवाज़ आती है जोगी, न जाने कौन है, मुझको बुलाता रहता है. - Dr. Sunil Jogi
निःशब्द हो जाता है मन सड़क के मूड़ स्विंग्स को देखकर कि देखो क्या गरीबी है? हालात-ए-ग़रीबी भयंकर जिधर देखो गाड़ियों की ये लंबी पंक्तियाँ लगी हैं. यहीं वो बसें हैं जिनमें खचाखच हालात में घंटों जाम लगा करते थे कभी, घुस पाना जितना कठिन था निकल पाना और दुष्कर था याद है अभी. ज़रा मौका मिलते ही दौड़ती बस है जो चढ़ सकती है कभी भी तेरी कार पर यकायक, कोई रोकने वाला नहीं लगी है मेट्रो युग में पछाड़ने में एक दूसरे को सरपट. है जल्दी में तू भी तो गाली उस मोटर साइकिल वाले को क्यूँ दिए जाता है? सड़क पर केवल किसी एक का हक़ नहीं है सड़क उसकी भी यह क्यूँ भूल जाता है. योगेंद्र खोखर
तसवीरें पुरानी देखीं तो बचपन के जमाने याद आये, वो कंचे, कुश्तियां याद आई, सहगल के तराने याद आये. इस बार जब अपने गाँव गया, जी खोल के घूमा गलियों में, फिर आँख मिचौली याद आई, छुपने के ठिकाने याद आए. बदला-बदला माहौल दिखा, बदले-बदले चेहरे भी दिखे, जो लोग थे कस्बे की रौनक वे बूढ़े सयाने याद आये. बच्चों का वही था शोर वह झुंझलाए हुए माँ-बाप वही, कुछ कांच के टुकड़े बिखरे थे, हम को भी निशाने याद आये. अब सोंधी महक से दूर हूँ जब, मगरूर नहीं मजबूर हूँ जब, फिर धान की बाली याद आई, फिर मकई के दाने याद आये. मेले, ठेले त्योहारों में, पतझड़ में और बहारों में, जो लोग बसे परदेस कभी निकले थे कमाने, याद आये. कल मेरे बच्चे ने भी जब स्कूल न जाने की ठानी, जो हम ने किये थे बापू से जोगी वो बहाने याद आये. -Dr. Sunil Jogi
एक मामूली इंसान का किस्सा है, हर सुख में दुख में इसका हिस्सा है. कार्य करता हरदम नही कहीं आराम है, कर्म ही इसका जीवन और भगवान है. कभी कहता है मानता नहीं ईश्वर को, हर समय पर मन में बाँचता राम राम है. धर्म से कोई वास्ता नहीं ऐसा सोचता है ये, धर्म के वास्ते एक दूसरे का मुँह नोचता है ये. खास दिन क्या होते हैं ये नही जानता है, हर दिन खुशी दिवस है ये यूँ ही मानता है. आखिर गेंद पर लगे छक्के से प्रफुल्लित, हर क्षेत्र में जीतूँगा अब ये मासूम ठानता है. -योगेंद्र खोखर
दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला सबसे प्यारी माँ है, खुद को काम में झोंके रख आखिर में खाने वाली माँ है. खुद तक़लीफ़ में चाहे जितनी हो बच्चों के लिए अरदास करने वाली माँ है, आप के अंदर का बचपन ज़िंदा रख इंसान बनाने वाली माँ है. समझती हर दर्द को सबसे बेहतर आपके सपनों में शामिल माँ है, आपके हर सुख हर दुख में निःस्वार्थ साथ निभाने वाली माँ है. कहीं किसी दर्द से परेशान माँ का भी दर्द बाँटना आता है इनको, तो अपनो को माँ का दुलार लुटाती आपकी हर हाँ में हाँ मिलाने वाली माँ है. ---योगेन्द्र खोखर